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हिमाचल डायरी : रेणुका जी झील और पाँवटा साहेब की तरफ…भाग 4

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झील शब्द तो स्वयम में ही स्त्री लिंग है, इसलियें रेणुका नाम तो अपेक्षित है, परन्तु पूरे रास्ते भर हमे जो भी साइन बोर्ड दिखे, सभी पर झील का नाम रेणुकाजी लिखा हुआ है, हमे आश्चर्य तो है, परन्तु इससे एक अंदाजा भी लग जाता है कि सम्भवतः इसका कोई धार्मिक कारण अवश्य होगा, परन्तु इसके मिथकीय इतिहास से अभी तो हम सर्वथा अनभिज्ञ हैं, हमने तो केवल इतना भर सुना था कि इसकी आकृति एक लेटी हुई महिला सरीखी है और इसके काफी बढ़े हिस्से पर कमल के फूल खिलते हैं | इधर हमारी यात्रा जारी है और अब जिस जगह पर पहुंचे हैं, वह परशुराम और रेणुकाजी का मन्दिर है | एक ही प्रांगण में रेणुकाजी के मन्दिर के साथ ही परशुरामजी का मन्दिर..., मस्तिक से स्मृति का धुंधलका मिटने लगा, याद आया कि रेणुका जी तो परशुराम की माता जी थी, कुछ हमने याद किया, कुछ इस मन्दिर से पता चला, तो कुल मिलाकर जो जानकारी इकट्ठी हुई, उसका सार कुछ इस प्रकार है- हिमाचल के इसी पर्वतीय क्षेत्र के जंगलो की कंदराओं में ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ एक आश्रम में रहते थे | असुर सहसत्रजुन की नीयत डोली और ऋषि पत्नी रेणुका को पाने की अभिलाषा में उसने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया | रेणुका ने अपने सत की रक्षा और दुष्ट असुर से बचने हेतु स्वयम् को जल में समाधिष्ठ कर लिया, बाद में परशुराम और देवतायों ने असुर का वध किया, और ऋषि व रेणुका को नव जीवन दिया और फिर ठीक उस जगह से एक जल धारा फूटी जिससे इस झील का निर्माण हुआ | मिथक कुछ भी हो, परन्तु आस पास के क्षेत्र के निवासियों में इस जगह का धार्मिक महत्व है और वह इस दंत कथा को मानते भी हैं इसका सबसे बढ़ा ज्वलंत प्रमाण तो यह ही है कि स्थानीय निवासी जब इस झील में नौका विहार के लिये जाते हैं तो अपने जूते-चप्पल किनारे पर ही उतार देते हैं |

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